Lord Shiva Sons: गणेश व कार्तिकेय ही के अलावा भगवान शिव और 5 पुत्रों के हैं पिता, जानें कौन-कौन हैं उनके पुत्र

7 Sons of Lord Shiva: भगवान शिव (Bhawan Shiv) और माता पार्वती (Mata Parvati) के दो पुत्रों भगवान कार्तिकेय (Bhagwan Kartikeya) और भगवान गणेश (Bhagwan Ganesh) के बारे में तो हर कोई जानता है. कार्तिकेय का जन्म असुर तारकासुर का वध करने के लिए हुआ था, जबकि भगवान गणेश को सभी देवताओं में प्रथम पूजनीय माना जाता है, इसलिए किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले गणेश जी की पूजा की जाती है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान कार्तिकेय और गणेश जी के अलावा भगवान शिव और पांच पुत्रों के पिता हैं. दरअसल, माता पार्वती से विवाह के बाद जब शिव जी ने गृहस्थ जीवन की शुरुआत की, तब अनके प्रकार की अलग-अलग घटनाओं से उनके 7 पुत्रों का जन्म हुआ. आइए जानते हैं कौन-कौन हैं भोलेनाथ के पुत्र…

स्वामी कार्तिकेय

शिवपुराण के एक प्रसंग के अनुसार, माता सती की मृत्यु के बाद भगवान शिव कठोर तपस्या में लीन हो गए थे, तब तारकासुर नाम के राक्षस का अत्याचार बढ़ गया था. तारकासुर के आंतक से पीड़ित सभी देवता भगवान ब्रह्मा की शरण में पहुंचे, तब उन्होंने बताया कि भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र के हाथों तारकासुर का अंत संभव है. जब भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ, तब उनके पुत्र कार्तिकेय का जन्म हुआ और उन्होंने तारकासुर का अंत किया.

भगवान गणेश

पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती जब एक बार स्नान करने के लिए जा रही थीं, तब द्वार पर पहरा देने के लिए किसी को न पाकर उन्होंने अपने शरीर के मैल और उबटन से एक बालक का निर्माण किया, फिर उसे द्वार पर पहरा देने की आज्ञा देकर माता पार्वती स्नान के लिए चली गईं. इस बीच भगवान शिव जब वहां पहुंचे तो बालक ने उन्हें भीतर जाने से रोक दिया. इससे क्रोधित होकर भोलेनाथ ने उस बालक के मस्तक को धड़ से अलग कर दिया. जब ये बात माता पार्वती को पता चली तो वे क्रोधिक हो गईं और अपने पुत्र को फिर से जीवित करने के लिए कहा. इसके बाद भगवान शिव ने हाथी का सिर बालक के धड़ से जोड़ दिया, तब जाकर माता पार्वती का क्रोध शांत हुआ और इस तरह से उनके दूसरे पुत्र भगवान गणेश की उत्पत्ति हुई थी. यह भी पढ़ें: Jyotirlingas In India: भारत के इन स्थानों पर स्थित है भगवान शिव ये 12 ज्योतिर्लिंग, जिनके दर्शन मात्र से मिट जाते हैं सारे पाप

सुकेश

हिंदू धर्म के पुराणों में भगवान शिव और माता पार्वती के तीसरे पुत्र सुकेश का उल्लेख मिलता है. इससे जुड़ी कथा के अनुसार, राक्षसराज हेति ने भया नामक कन्या से विवाह किया था. इन दोनों के पुत्र विद्युतकेश ने संध्या की पुत्री सालकटंकटा से विवाह किया. कहा जाता है कि सालकटंकटा व्यभिचारिणी थी, जिसके चलते जब उसके पुत्र का जन्म हुआ तो उसने उसे छोड़ दिया. उस लावारिस बच्चे को भगवान शिव और माता पार्वती ने न सिर्फ संरक्षण प्रदान किया, बल्कि उसे अपने पुत्र के रूप में स्वीकार भी किया.

भगवान अयप्पा

भगवान अयप्पा देवों के देव महादेव के चौथे पुत्र कहलाते हैं, जिनकी पूजा दक्षिण भारत के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में की जाती है. पौराणिक कथा के अनुसार, जब भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था, तब उनके मनमोहक रूप को देखकर भगवान शिव मोहित हो गए थे और उनका वीर्यपात हो गया था, जिससे भगवान अयप्पा का जन्म हुआ.

जलंधर

श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से उत्पन्न हुए तेज को समुद्र में फेंक दिया था, जिससे जलंधर की उत्पत्ति हुई. जलंधर असुर शिव का अंश था, लेकिन उसे इसका पता नहीं था. एक शक्तिशाली असुर होने के साथ-साथ वो भगवान शिव का सबसे बड़ा शत्रु था. एक बार उसने माता पार्वती को अपनी पत्नी बनाने के लिए महादेव से युद्ध शुरु किया और अंत में वो अपने ही पिता के हाथों मारा गया.

भौमा

भगवान शिव के छठे पुत्र को भौमा के नाम से जाना जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार जब भगवान शिव कठोर तपस्या में लीन थे, तब उनका पसीना भूमि पर गिर गया. उनके इसी पसीने से पृथ्वी को एक पुत्र प्राप्त हुआ, रक्त वर्ण वाले उस बालक की चार भुजाएं थीं. भगवान शिव के पसीने से उत्पन्न बालक को भूमि यानी पृथ्वी का पुत्र भी कहा जाता है, इसलिए उनका नाम भौमा है जो नौ ग्रहों में मंगल ग्रह के तौर पर जाने जाते हैं. यह भी पढ़ें: Shivling: शिवलिंग क्या है? जानें भगवान शिव के इस प्रतीक का वास्तविक अर्थ और आकार का रहस्य

अंधक

पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार माता पार्वती ने पीछे से आकर भगवान शिव के नेत्रों को अपनी हथेली से बंद कर दिया था. भगवान शिव के नेत्र बंद होते ही संसार में अंधकार छा गया, जिसे दूर करने के लिए महादेव ने अपना तीसरा नेत्र खोला. उनके तीसरे नेत्र के प्रकाश से माता पार्वती को पसीना आ गया और पसीने की बूंदों से एक बालक का जन्म हुआ. कहा जाता है कि उस बालक का जन्म अंधेरे में हुआ था, इसलिए उसका नाम अंधक पड़ा और वो जन्म से ही नेत्रहीन था.

डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई तमाम जानकारियां प्रचलित धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसलिए इसकी वास्तविकता, सटीकता की ‘अनादि लाइफ’ पुष्टि नहीं करता है. इसे लेकर हर किसी की राय और सोच में भिन्नता हो सकती है.

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