Origin of Shivalinga: त्रिदेवों में भगवान शिव (Lord Shiva) को देवों के देव महादेव (Mahadev) और आदिदेव भी कहा जाता है. समस्त संसार में भगवान शिव (Bhagwan Shiv) ही ऐसे देव हैं, जिन्हें मूर्ति और निराकार लिंग दोनों ही रूपों में पूजा जाता है. ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग (Shivlinga) की पूजा पूरे ब्रह्मांड की पूजा के मानी जाती है, क्योंकि भोलेनाथ ही समस्त जगत के मूल हैं. शिवलिंग दो शब्दों ‘शिव’ और ‘लिंग’ से मिलकर बना है, जिसमें ‘शिव’ का अर्थ ‘परम कल्याणकारी’ और ‘लिंग’ का अर्थ ‘सृजन’ है, इसलिए शिवलिंग का अर्थ है भगवान शिव का प्रतीक. हालांकि क्या आप जानते हैं कि शिवलिंग की उत्पत्ति कैसे हुई थी और भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा क्यों की जाती है. आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं.
शिवलिंग की उत्पत्ति की कथा
लिंगमहापुराण के मुताबिक, श्रेष्ठता को लेकर सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रह्मा और जगत के पालनहार भगवान विष्णु के बीच विवाद हो गया था, जब दोनों के बीच विवाद ज्यादा बढ़ गया, तब अग्नि की ज्वालाओं से लिपटा हुआ लिंग ब्रह्मा और विष्णु के बीच आकर स्थापित हो गया. दोनों देव उस लिंग के रहस्य को समझ नहीं पाए और उसके स्रोत का पता लगाने के लिए उन्होंने हजारों वर्षों तक खोज की, फिर भी वे असफल रहे.
आखिरकार निराश होकर भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु उसी स्थान पर आ गए, जहां उन्होंने प्रथम बार लिंग को देखा था. वहां आने के बाद उन्हें ओम् का स्वर सुनाई दिया, जिसे सुनने के बाद दोनों देवों को अनुभव हुआ कि यह कोई शक्ति है, जिसके बाद वे ओम् के स्वर की आराधना करने लगे. दोनों की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव उस लिंग से प्रकट हुए और उन्हें सद्बुद्धि का वरदान दिया.
ऐसी मान्यता है कि दोनों देवों को वरदान देने के बाद भगवान शिव अंतर्ध्यान हो गए और शिवलिंग के रूप में स्थापित हो गए, जिसे देवों के देव महादेव का पहला शिवलिंग माना गया और सबसे पहले भगवान ब्रह्मा और भगवान विष्णु ने ही उस शिवलिंग की पूजा की थी. ऐसी मान्यता है कि तब भगवान शिव की लिंग के रूप में पूजा करने की यह परंपरा शुरु हुई है.
शिवलिंग का महत्व
स्कंदपुराण के अनुसार, आकाश को लिंगस्वरूप माना गया है, क्योंकि शिवलिंग वातावरण सहित घूमती हुई पृथ्वी और पूरे ब्रह्मांड की धुरी है. शिवलिंग का मतलब अनंत है यानी जिसका न तो कोई प्रारंभ है और न ही कोई अंत. वायु पुराण के मुताबिक, प्रलयकाल में हर महायुग के बाद समस्त संसार इसी अनंत शिवलिंग में मिल जाता है और फिर इसी शिवलिंग से दोबारा संसार का सृजन होता है, इसलिए संसार की संपूर्ण ऊर्जा का प्रतीक शिवलिंग को माना जाता है. शिवलिंग भगवान शिव का ही निराकार रूप है, जबकि मूर्तिरूप में शिव की भगवान शंकर के रूप में पूजा होती है.
इसलिए होती है शिवलिंग की पूजा
प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, आदिकाल से ही लिंग रूप में भगवान शिव की पूजा की जा रही है. समस्त देवी-देवताओं में भगवान शिव की एकमात्र ऐसे देव हैं, जिनके लिंग स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है. इसे लेकर कई कथाएं और मान्यताएं प्रचलित हैं.
इससे जुड़ी एक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान निकले हलाहल से संसार की रक्षा करने के लिए भगवान शिव ने उसे अपने कंठ में रख लिया था. विषपान करने की वजह से उनका कंठ नीला हो गया था, जिसके बाद वे नीलकंठ कहलाए, लेकिन विष पीने की वजह से उनके शरीर का दाह बढ़ गया था, जिसे शांत करने के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाने की परंपरा शुरु हुई, जिसका पालन आज भी किया जाता है. यही वजह है कि भगवान शिव का प्रतीक मानकर शिवलिंग की पूजा की जाती है.
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई तमाम जानकारियां प्रचलित धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसलिए इसकी वास्तविकता, सटीकता की ‘अनादि लाइफ’ पुष्टि नहीं करता है. इसे लेकर हर किसी की राय और सोच में भिन्नता हो सकती है.