What Is Shivling: भगवान शिव (Bhagwan Shiv) सभी देवताओं में एक मात्र ऐसे देव हैं, जिनकी पूजा शिवलिंग (Shivling) और मूर्ति रूप में की जाती है. भले ही भक्त शिवलिंग के रूप में भोलेनाथ (Bholenath) की आराधना करते हैं, लेकिन कई लोगों के मन में ऐसा भ्रम है कि शिवलिंग यानी भगवान शिव का लिंग, जबकि ऐसा कतई नहीं है. अगर आपके मन भी शिवलिंग को लेकर ऐसा कोई भ्रम है तो यहां यह जानना बेहद जरूरी है कि संस्कृत में लिंग का अर्थ चिन्ह या प्रतीक होता है और इस हिसाब से शिवलिंग का अर्थ हुआ भगवान शिव का प्रतीक. आइए इस लेख में विस्तार से जानते हैं शिवलिंग क्या है, इसका वास्तविक अर्थ और रहस्य क्या है? यह भी पढ़ें: Origion of Shivling: इस तरह से हुई थी शिवलिंग की उत्पत्ति, इसलिए लिंग के रूप में होती है भगवान शिव की पूजा
शिवलिंग क्या है?
शिवलिंग संस्कृत के दो शब्दों शिव और लिंग से मिलकर बना है. शिव का अर्थ- स्थिर और शाश्वत है, जबकि लिंग का अर्थ प्रतीक या चिह्न है, इसलिए शिवलिंग का पूर्ण अर्थ ‘शिव का प्रतीक’ या ‘शिव का अंश’. शिवलिंग का मतलब अनंत भी है, जिसका न कोई अंत है और ना ही आरंभ. शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्मांड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से ही इसे लिंग कहा गया है. भाषा के रूपांतरण और भ्रमित लोगों द्वारा पुरातन धर्म ग्रंथों को नष्ट कर दिए जाने के चलते ऐसा भ्रम उत्पन्न हुआ है कि शिवलिंग का मतलब लिंग होता है, जबकि इसका सही अर्थ प्रतीक या चिह्न है.
शिवलिंग के आकार का रहस्य
शिवलिंग का आकार अंडाकार है, जिसे लेकर वैज्ञानिक और आध्यात्मिक दोनों तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. आध्यात्मिक मान्यताओं के अनुसार, ब्रह्मांड का भगवान शिव ने ही निर्माण किया था, जिसका अर्थ यह है कि भोलेनाथ ही वो बीज हैं, जिससे पूरा संसार बना है, इसलिए शिवलिंग का आकार अंडाकार है. वहीं वैज्ञानिक नज़रिए से बिग बैंग थियरी में कहा गया है कि ब्रह्मांड का निर्माण अंडे जैसे कण से हुआ है और शिवलिंग के इस आकार को लेकर लोगों का मानना है इसी शिवलिंग से ही इस संसार का निर्माण हुआ है. यह भी पढ़ें: Panch Kedar: भगवान शिव के पांच महत्वपूर्ण धाम हैं पंच केदार, जानें उत्तराखंड के गढ़वाल में स्थित इन मंदिरों की महिमा
शिवलिंग से जुड़ी कहानी
प्रचलित पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा में श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया. इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव ने एक दिव्य लिंग यानी दिव्य ज्योति को प्रकट किया. भगवान विष्णु और ब्रह्मा को उस शिवलिंग का ना तो आदि मिला और ना ही अंत, तब जाकर उन्हें भगवान शिव के परब्रह्म रूप का ज्ञान हुआ. उन्हें उसके बाद एहसास हुआ कि भगवान शिव का यह लिंग ही सर्वश्रेष्ठ है और उसके बाद से ही शिवलिंग की पूजा की शुरुआत हुई.
डिस्क्लेमर: इस लेख में दी गई तमाम जानकारियां प्रचलित धार्मिक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसलिए इसकी वास्तविकता, सटीकता की ‘अनादि लाइफ’ पुष्टि नहीं करता है. इसे लेकर हर किसी की राय और सोच में भिन्नता हो सकती है.